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Sunday, February 28, 2010

त्र से त्रिशूल.....








त्र कहे मेरे प्यारे बच्चों,
अपने बारे में बताता हूँ,
मैं हूँ एक संयुक्ताक्षर,
ज्ञ के पहले आता हूँ,
त् और र के मिलने से,
मैंने अपना रूप है पाया,
मुझे बहुत खुशी है कि,
वर्णमाला ने मुझे अपनाया,
त्रिनेत्र, त्रिशूल, त्रिपुरारी में मैं,
मित्र, शत्रु में भी हूँ मैं,
आप सभी मुझे हैं पढ़ते,
कितना भाग्यशाली हूँ मैं।
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त्र से त्रिशूल, एक हथियार,
शंकरबाबा को इससे प्यार,
सदा हाथ में धारण करते,
भक्तों का कष्ट दूर हैं करते,
एक हाथ से डमरू बजाते,
बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते।
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_____प्रभाकर पाण्डेय_____





1 comment:

समयचक्र said...

प्यारी रचना . . रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाये .

 
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